मेरा नाम अर्चना है। मेरी उम्र 25 साल है, हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। मेरी सहेली और सहकर्मी अनुषा के साथ 2BHK फ्लैट में रहती हूँ।
पिछले एक साल से हम खाना, गपशप, चाय के पल बांटते हुए काफी करीबी हो गई हैं। अनुषा का बॉयफ्रेंड पार्थु, 25 साल का, पास ही काम करता है और वीकेंड में अक्सर आता है। सीधा-सादा और जल्दी घुल-मिल जाने वाला लड़का।
एक बारिश वाली शुक्रवार की रात, हमने घर पर ही मूवी देखने का प्लान बनाया। बेडरूम में टीवी चल रहा था, बाहर बारिश से माहौल और भी सुखद हो गया था। हम दोनों सीट वाले सोफे पर बैठे थे, सामने पॉपकॉर्न का बाउल रखा था।
मूवी आधी होते-होते अनुषा ने जम्हाई ली और “ये प्रोडक्शन रिलीज़ के बाद मैं बचूँगी कि नहीं, पता नहीं” हँसते हुए बोली, फिर बेड पर जाकर सो गई।
अब सोफे पर बस मैं और पार्थु थे। कमरे में सन्नाटा और हवा में एक नया अहसास फैल गया।
हमने सोचा था पास नहीं बैठेंगे, लेकिन धीरे-धीरे एक-दूसरे के करीब आ गए। हमारे पैर छू गए, किसी ने हटाया नहीं। मैंने छोटे नाइट शॉर्ट्स और हुडी पहनी थी — अंदर कुछ नहीं था। मैं हल्का सा हिली तो पार्थु की नज़र नीचे चली गई। मैंने अनदेखा किया।
मेरे घुटने ने उसके घुटने को छुआ, फिर हमारे तलवे आपस में रगड़ गए।
उसका हाथ मेरी जांघ पर आकर रुक गया — ज़बरदस्ती नहीं, बस एक नरम सा स्पर्श। मैंने हटाया नहीं। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे ऊपर चढ़कर शॉर्ट्स के अंदर गईं और मेरी गीली चूत के होंठों को छुआ। उसकी साँस रुक गई। वो धीरे-धीरे रगड़ने लगा और मेरे पैर काँपने लगे।
टीवी चल रही थी, कमरे में वही रोशनी थी। अनुषा सो रही थी। उसके स्पर्श के बाद मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने पैर फैलाए, शॉर्ट्स थोड़े खिसके और ज्यादा त्वचा दिखने लगी। पार्थु की नज़र मुझ पर अटकी रही। मैं धीरे से उसकी आँखों में देखने लगी — बिना शब्दों के, सिर्फ़ चाहत की एक खामोश पुकार।
वो थोड़ा आगे बढ़ा, हाथ मेरी कमर पर रखकर हुडी के नीचे मेरी त्वचा को छूने लगा। उसकी गर्माहट पूरे शरीर में फैल गई। मैं पीछे को झुक गई, धीरे-धीरे साँस ले रही थी, पैर फैले रहे — मैंने उसे रोका नहीं।
उसकी उंगलियाँ हुडी के नीचे गर्म और स्थिर थीं। मेरे अंदर की चाहत तेज हो गई। अनुषा का ख्याल दूर चला गया। मैंने उसका गाल छुआ और धीरे से होंठों पर किस किया। उसने रुककर उसी लय में मुझे चूमना शुरू किया।
उसका हाथ मेरी जांघ पर और ऊपर चला गया। सोफा चरमराया, हम दोनों हिले। टीवी की रोशनी, बारिश और पास में सोती अनुषा — हम लौटने की हद पार कर चुके थे।
उसका किस मेरे होंठों को गरमा रहा था। मेरा हाथ उसकी छाती से नीचे सरककर ट्रैकपैंट में उसके खड़े लंड को छू गया। उसकी उंगलियाँ मेरी जांघ सहलाते हुए शॉर्ट्स के अंदर गईं और मेरी गीली चूत के होंठों को रगड़ने लगीं। मैंने उसका लंड हाथ में लेकर वेस्टबैंड के अंदर हाथ डाला और उसके गर्म, मोटे लंड को कसकर पकड़ लिया।
मेरी चूत शॉर्ट्स को भिगो रही थी। उसकी उंगलियाँ लगातार मेरे होंठों को सहला रही थीं। हम कुछ नहीं बोले, न दोबारा चूमे — बस छूते रहे, बेसब्री से, एक निषिद्ध लकीर पार करते हुए।
मेरा हाथ उसके लंड को कसकर पकड़े था, उसकी उंगलियाँ मेरी गीलापन में डूबी थीं। मैं उठी, शॉर्ट्स नीचे खींचकर अपनी चमकती चूत को बाहर कर दिया। उसकी आँखें मेरी जांघों पर टिक गईं। उसने अपनी पैंट नीचे खींची और मोटा, सख्त लंड आज़ाद कर दिया।
मैं उस पर चढ़ गई, अपनी चूत को उसके लंड पर रगड़ते हुए। हमारे होंठ एक भूखे, बेताब किस में मिल गए। उसके हाथ हुडी के नीचे मेरी चूचियों को कसकर मसल रहे थे। मैं धीरे-धीरे नीचे सरकी और उसका लंड मेरी चूत के होंठ चीरते हुए अंदर उतर गया। मैंने साँस रोक ली, भीगी हुई, गोल-गोल हिलते हुए, मेरी गांड उसके ऊपर रगड़ खा रही थी।
उसने मेरी चूची के सिरे को चूसा, जीभ से खेलते हुए मैं उसके लंड पर हिल रही थी। मेरी चूत की गीली आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, अनुषा पास ही सो रही थी।
मैं ज़ोर से उछली, मेरी गीली चूत नीचे उतरते हुए हर धक्के में मेरी गांड रगड़ खा रही थी। अनुषा की शांत साँसों ने सस्पेंस बढ़ा दिया। पार्थु की आँखों में भूख चमक रही थी। मैंने उसे गहरा किस किया और कमर तेज़ी से हिलाई। मेरी चूत कस गई, मैं उसकी गर्दन पर दबे स्वर में कराहते हुए फट पड़ी।
वो तेज़ी से धकेलता रहा और मेरी चूत को गरम वीर्य से भर दिया। मैं ढह गई, वीर्य टपक रहा था, हमारी साँसें तेज़ हो चुकी थीं।
टीवी की रोशनी, बाहर थम चुकी बारिश और पास में सोती अनुषा — हम पसीने से भीगे, थके और चुप थे। मैंने जो लकीर पार की थी, अब लौटने का सवाल नहीं था — और लौटना चाहती भी नहीं थी।